बैसाखी से पहले पंजाब में अलर्ट

पंजाब के बठिंडा में भारी सुरक्षा बंदोबस्त से चिंतित अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह (Giani Harpreet Singh) ने शुक्रवार को राज्य सरकार पर बैसाखी (Vaisakhi) से पहले दहशत फैलाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार की सख्ती की वजह से जो दहशत फैली हुई है उसे खत्म किया जाना चाहिए.

जत्थेदार ने कहा कि भगोड़े अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) के आत्मसमर्पण करने की खबरें फैलाकर दहशत फैलाने की कोशिश की जाती है, तो सरकार को इससे बचना चाहिए. अगर ऐसी स्थिति बनती है कि जिससे ना केवल पंजाबियों और पंजाब की छवि पर असर पड़ता है. बल्कि पंजाब में शासन कर रही सरकार पर भी असर पड़ता है. जत्थेदार ने सरकार से कहा कि कम से कम अपनी छवि तो बचा लो. वही मंच से बोलते हुए जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने एक बार फिर भगोड़े अमृतपाल से आत्मसमर्पण करने की सलाह दी.

चर्चा के लिए बुलाई गई थी बैठक

जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि उनकी तरफ से सिख एवं पंजाबी पत्रकारिता की भूमिका, सिख मीडिया के योगदान और वर्तमान में राज्य के समक्ष चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए एक विशेष सभा बुलाई थी. जिसमें लोगों से बड़ी संख्या में शामिल होने की अपील भी की गई थी, लेकिन मीडिया की तरफ से उनके बयान को ‘तोड़-मरोड़’ कर पेश किया गया. कहा गया कि वो सरबत खालसा की बैठक बुला रहे है, जिसका अमृतपाल ने अपने वीडियो में जिक्र किया था. जबकि तख्त दमदमा साहिब में हुई इस बैठक में सिख एवं पंजाबी पत्रकारिता की भूमिका, सिख मीडिया के योगदान और वर्तमान में राज्य के समक्ष चुनौतियों पर चर्चा की गई है. यह बैठक ऐसे समय पर बुलाई गई है, जब इस सीमावर्ती राज्य में अलगाववादी ताकतों के उदय के बारे में चिंता व्यक्त की जा रही है.

जत्थेदार ने निकाय के गठन किया आह्वान

जत्थेदार ने मीडिया में ‘सिख-विरोधी फोबिया’ या ‘पंजाब-विरोधी फोबिया’ सामग्री का पता लगाने और उसका भंडाफोड़ करने के लिए एक निकाय के गठन का भी आह्वान किया. उन्होंने कहा जो भी फर्जी खबरें फैलाई जा रही हैं. उनका पता लगाने और इसका पर्दाफाश करने के लिए इस तरह का एक संगठन बनाया जाएगा. वहीं अकाल तख्त के जत्थेदार ने कहा कि कड़ी सुरक्षा के कारण इस बार बैसाखी से पहले सामान्य से काफी कम संख्या में श्रद्धालु यहां आए हैं. ‘हर साल, हम (बैसाखी के लिए) भारी भीड़ देखते हैं, यह पांच अप्रैल से शुरू होती है, लेकिन (फिलहाल) संगत की संख्या महज 10 फीसदी है. इसका कारण सरकार द्वारा फैलाई गई दहशत है.